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इंटरनेशनल जेमोलॉजिकल इंस्टिट्यूट आईपीओ: पहले दिन 4% सब्सक्रिप्शन, रिटेल निवेशकों का अच्छा रिस्पॉन्स

इंटरनेशनल जेमोलॉजिकल इंस्टिट्यूट (IGI) के आईपीओ ने पहले दिन 13 दिसंबर को 4% सब्सक्रिप्शन हासिल किया। रिटेल निवेशकों ने इसमें खास रुचि दिखाई, जहां इस श्रेणी में 17% शेयर सब्सक्राइब हुए।

IPO की खास बातें:

  • इश्यू साइज: ₹4,225 करोड़
  • एंकर निवेशकों से राशि: ₹1,900 करोड़ (एक दिन पहले जुटाई गई)
  • बोली लगाई गई कुल शेयर: 22.28 लाख
  • कुल ऑफर किए गए शेयर: 5.85 करोड़

एनएसई पर सुबह 11:06 बजे तक उपलब्ध डेटा के अनुसार, गैर-संस्थागत निवेशकों (NII) की श्रेणी में 3% सब्सक्रिप्शन देखा गया।

आईपीओ की समयसीमा

  • अलॉटमेंट की तारीख: 18 दिसंबर 2024
  • लिस्टिंग की तारीख: 20 दिसंबर 2024
  • स्टॉक एक्सचेंज: बीएसई और एनएसई

ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP)

आईजीआई के ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) में भी निवेशकों की रुचि बनी हुई है। हालांकि, इसका सटीक आंकड़ा अपडेट किया जा रहा है।

बैकग्राउंड:
ब्लैकस्टोन समर्थित डायमंड ग्रेडिंग कंपनी इंटरनेशनल जेमोलॉजिकल इंस्टिट्यूट (इंडिया) लिमिटेड ने इस आईपीओ के जरिए निवेशकों का ध्यान आकर्षित किया है।

निवेशकों के लिए मौका:
यह तीन दिवसीय आईपीओ 15 दिसंबर तक खुला रहेगा, जो निवेशकों को उच्च गुणवत्ता वाले शेयरों में भागीदारी का अवसर प्रदान करता है।

इंटरनेशनल जेमोलॉजिकल इंस्टिट्यूट (IGI) के आईपीओ ने पहले दिन 13 दिसंबर को 4% सब्सक्रिप्शन हासिल किया। रिटेल निवेशकों ने इसमें खास रुचि दिखाई, जहां इस श्रेणी में 17% शेयर सब्सक्राइब हुए।

IPO की खास बातें:

  • इश्यू साइज: ₹4,225 करोड़
  • एंकर निवेशकों से राशि: ₹1,900 करोड़ (एक दिन पहले जुटाई गई)
  • बोली लगाई गई कुल शेयर: 22.28 लाख
  • कुल ऑफर किए गए शेयर: 5.85 करोड़

एनएसई पर सुबह 11:06 बजे तक उपलब्ध डेटा के अनुसार, गैर-संस्थागत निवेशकों (NII) की श्रेणी में 3% सब्सक्रिप्शन देखा गया।

आईपीओ की समयसीमा

  • अलॉटमेंट की तारीख: 18 दिसंबर 2024
  • लिस्टिंग की तारीख: 20 दिसंबर 2024
  • स्टॉक एक्सचेंज: बीएसई और एनएसई

ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP)

आईजीआई के ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) में भी निवेशकों की रुचि बनी हुई है। हालांकि, इसका सटीक आंकड़ा अपडेट किया जा रहा है।

बैकग्राउंड:
ब्लैकस्टोन समर्थित डायमंड ग्रेडिंग कंपनी इंटरनेशनल जेमोलॉजिकल इंस्टिट्यूट (इंडिया) लिमिटेड ने इस आईपीओ के जरिए निवेशकों का ध्यान आकर्षित किया है।

यह तीन दिवसीय आईपीओ 15 दिसंबर तक खुला रहेगा, जो निवेशकों को उच्च गुणवत्ता वाले शेयरों में भागीदारी का अवसर प्रदान करता है।

गुकेश: चौथी कक्षा में स्कूल छोड़ा, बिना प्रायोजक, पिता ने नौकरी छोड़ी, मां बनीं एकमात्र कमाने वाली: सबसे युवा विश्व चैंपियन की कहानी

भारतीय शतरंज खिलाड़ी डी. गुकेश का जीवन संघर्ष और बलिदान की मिसाल है। मात्र सात साल की उम्र में विश्व चैंपियन बनने का सपना देखने वाले गुकेश ने महज 11 साल में यह सपना सच कर दिखाया। 18 साल की उम्र में सबसे युवा विश्व चैंपियन बनने वाले गुकेश ने चीन के मौजूदा चैंपियन डिंग लिरेन को 14 मैचों की मैराथन में हराया और विश्वनाथन आनंद के बाद यह खिताब जीतने वाले दूसरे भारतीय बने।

यह जीत न केवल गुकेश के लिए, बल्कि उनके माता-पिता के लिए भी अविस्मरणीय थी। उनके पिता डॉ. रजनीकांत, जो एक प्रतिष्ठित ईएनटी सर्जन थे, ने अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। वहीं उनकी मां पद्मा, जो एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं, परिवार की एकमात्र कमाने वाली बन गईं।

बलिदान और संघर्ष की कहानी

गुकेश का शतरंज का सफर आसान नहीं था। उनके पिता ने 2017-18 में प्रैक्टिस बंद कर दी और बेटे के साथ दुनिया भर में प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए सीमित बजट पर सफर किया। इस दौरान, उनकी मां ने घर की आर्थिक जिम्मेदारियां संभालीं।

गुकेश ने कहा, “हम आर्थिक रूप से बहुत मजबूत नहीं थे, लेकिन उस समय मुझे इसका अहसास नहीं था। 2017 और 2018 में स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि मेरे माता-पिता के दोस्तों ने मेरी मदद की। मेरे माता-पिता ने मेरे लिए कई तरह के बदलाव किए और सबसे ज्यादा बलिदान दिए।”

गुकेश ने चौथी कक्षा के बाद स्कूल जाना बंद कर दिया ताकि वे शतरंज पर पूरा ध्यान दे सकें। 2013 में, जब विश्वनाथन आनंद ने अपना विश्व खिताब मैग्नस कार्लसन के खिलाफ गंवाया था, तब गुकेश ने सप्ताह में तीन बार एक घंटे की शतरंज कक्षाओं से शुरुआत की।

शुरुआती सफलता और चढ़ाई

गुकेश ने अपनी पहली बड़ी जीत 2018 में एशियन स्कूल चैंपियनशिप और वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप (अंडर-12) में गोल्ड मेडल के रूप में दर्ज की। 2019 में, नई दिल्ली में आयोजित एक प्रतियोगिता के दौरान, उन्होंने इतिहास रचते हुए दुनिया के दूसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर का खिताब जीता।

हालांकि, इस सफर में गुकेश को प्रायोजकों का अभाव झेलना पड़ा। उनकी ज्यादातर आर्थिक जरूरतें पुरस्कार राशि और माता-पिता की क्राउड-फंडिंग के जरिए पूरी हुईं। लेकिन इन सभी चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने अपने आदर्श विश्वनाथन आनंद को पीछे छोड़ते हुए भारत के नंबर-1 खिलाड़ी बनने का गौरव हासिल किया।

आनंद से मिली दिशा

गुकेश की किस्मत तब चमकी, जब वेस्टब्रिज-आनंद चेस अकादमी, जो 2020 में COVID-19 महामारी के दौरान शुरू हुई थी, में उन्हें आनंद से प्रशिक्षण लेने का मौका मिला। इस अकादमी ने गुकेश को उनके खेल में सुधार करने और नई ऊंचाइयों तक पहुंचने में मदद की।

गुकेश ने अपने माता-पिता के समर्थन और अपने दृढ़ संकल्प से यह साबित कर दिया कि कठिनाइयों के बावजूद, अगर जुनून और मेहनत हो, तो कोई भी सपना साकार किया जा सकता है।